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Tuesday 2 June 2015

समाज या भेड़

   समाज  या  भेड़  




              पीरियड ख़ाली था, क्लास मे किसी से बात करने का मन  नहीं था,  मन मे  अंतर्द्वंदो  ने हाहाकार  मचाया हुआ था  ।  तभी पता  नहीं कहीं  से मेरी दुश्मन आ  गई ।  " ना - ना " दुश्मन से आप  गलत  अर्थ  ना  निकाले, मेरी सबसे अच्छी  सहेली अमिता , उसे ही मै  अपना दुश्मन कहती हूँ । आते ही पीछे से जब धौंल पड़ा  मेरी पीठ पर और मेरा चश्मा आँख से नाक पर आ गया । तब मेरे होश वर्तमान मे  आये । और मै उसकी तरफ पागलों-सी देखने लगी । अचानक आवाज़ को भारी करते हुए बोली ," क्यों बे , कहाँ खो गया था ? आज तो चोरी करते हुए पकड़ा गया । और बिना मेरी  बात को सुने हाथ को पकड़कर उठाते हुए बोली ," तुम भी क्या इन बोरिंग लड़कियों मे बैठी हो ? " चलो , कहीं किसी खाली कोने मे बैठते हैं । " मैं बिना कुछ बोले , चुपचाप उसके साथ चल दी । मैं अपने मे खोये - खोये कॉलेज के किस कोने मे आ गयी , पता ही नहीं चला । होश, मुझे तब आया , जब उसने मुझे बैठाते हुए बड़े अदब के साथ झुकते हुए बोला ," हुज़ूर , गुलाम आपसे यहाँ बैठने की इल्तज़ा कर सकता है । " मेरे चेहरे  पे हल्की -सी मुस्कान उभरी और मैं बैठ गयी । लेकिन इतना ध्यान फिर भी न था कि इसने क्या कहा है और जो कहा है, वह ठीक कहा है । शायद आज अमिता भी असमंजस मे पड़ गई । क्योंकि इतना चुप रहने वालों मे से , मैं भी नहीं हूँ । इसलिए वह वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए गंभीर स्वर मे बोली, ' जया , आखिर बात क्या है ? " मेरा हाथ एक घास के तिनके के साथ खेल रहा था और निगाहें  भी वहीँ अटकी हुयी थी । बड़ा जोर लगाकर बस इतना ही बोल पाई , " कुछ नहीं " । और पता नहीं क्या हुआ कि  मेरी आँखों मे आँसू आ गये । पता नहीं, शायद बहुत दिनों की भंड़ास, किसी अपने के पास  की नज़दीकी  या पता नहीं किस कारण । जैसे ही अमिता ने मेरे आँसू  देखे,  उसका चेहरा उतर गया । और दोनों हाथों के बीच मेरा हाथ दबाते हुए बोली ," जया, तुम्हें मेरी कसम, बात बताओ , क्या है ? क्या घर में कोई बात हो गयी या-----------और वाक्य अधूरा छोड़ दिया । मैंने इतनी देर मे , स्वयं को कहीं तक नियन्त्रित कर लिया था । मैं धीरे -से बोली, " ना, घर की कोई बात नहीं है । बस ऐसे ही दिल भर आया था । " फिर जल्दी से बोली ," तुझसे मिले भी तो कई दिन हो गये । शायद  मैं विषय बदलना चाहती थी । लेकिन वो तो मेरी पक्की दुश्मन निकली, ताड़ गयी मेरी कमजोरी और बोली , " तेरे मंजनू ने तो कोई  नाटक नहीं कर दिया । " अचानक मैंने अपना हाथ उसके हाथ से झटक लिया और उसकी तरफ त्यौरियां चढ़ाकर तर्जनी ऊँगली दिखाती  हुई बोली, " ऐं, उनके बारे मे  कुछ नहीं बोलेगी,  समझी ।" उनके बारे मे  ! उनननननन के कहते -कहते , उसने जो हँसना शुरू किया , तो रुकने का नाम ही न ले ।  मेरा दिल और जल-भुन गया । फिर अचानक मेरे पास आकर , आँख दबाई और गर्दन उचकाकर  बोली," वो उनके  कब से हो गए । मैं झुँझलाकर बोली , " प्लीज मज़ाक छोड़ो । मेरी जान पर बन रही है और तुझे छेड़ने मे  मज़ा आ रहा है । " अनायास मैंने गंभीर होकर कहा , " अच्छा , ये बता , तुझे अगर अवसर मिले तो प्रेम विवाह करेगी या पारम्परिक ? " मेरे अचानक ऐसे प्रश्न करने  पर, वो अचकचा गयी । मेरे प्रश्न का मन्तव्य या पता नहीं कुछ और थोड़ी देर तक सोचती रही । और बोली। " तू कौन-सा विवाह कर रही है ?" मैं बे-झिझक  बोली, " प्रेम-विवाह ",।  " कब ?" लेकिन मैं उसका प्रश्न अनसुना करते  हुए बोली, " लेकिन मेरे सामने एक समस्या है और जो अक्सर इस प्रकार के विवाहों मे आती है ।" उसने पूछा, " क्या " ? मैंने उत्तर दिया, " प्रेम विवाह हो या पारम्परिक विवाह, विवाह तो विवाह है लेकिन समाज प्रेम विवाह को  पचा क्यों नहीं पता ? " वह बोली," तुमने स्वंयम ही उत्तर दे दिया, क्योंकि यह प्रेम विवाह है । " लेकिन है तो  विवाह ही ना । " मैंने  प्रत्युत्तर  दिया । अमिता  थोड़ी ठहरी और बोली, " पारम्परिक विवाह मे, प्रेम बाद मे  होता है विवाह पहले । जबकि प्रेम विवाह मे, प्रेम पहले और विवाह बाद मे । " "आखिर इससे कुछ फर्फ तो पड़ता नहीं । कान चाहेँ इधर से पकड़ो या उधर से । लेकिन समाज प्रेम विवाह के विरुद्ध क्यों है ? तुम्हेँ पता है ? बिना उसे देखे  और बिना उसके उत्तर देने की परवाह किये, मैं अपनी आँख शून्य मे टिकाते हुए बोली, " समाज, यह तथाकथित समाज, भेडों के समूह के समान है । और यहाँ कोई भेड़ अपना रास्ता खुद तय करे, यह समाज कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता । क्योंकि अगर प्रत्येक भेड़ अपना रास्ता खुद तलाश कर, उस पर चलने लगे, तो जिसे हम समाज कहते है, वह रह कहाँ जायेगा ? इसलिए जब भी कोई भेड़ अपना रास्ता बनाने लगती है तो जिस समाज को प्रसन्न होना चाहिए था कि कोई हिम्मतवर है जो अकेले जाने का सहस कर रहा है उसे प्रोत्साहित करना चाहिए था  । उसे वे लोग दबाने लगते है, प्रताडित करते है, धिक्कारते है, अपने निहित स्वार्थवश व्यक्ति को कुंठित करने लगते हैं । " शायद अमिता मेरी भावदशा के साथ एक्राग हो चुकी थी । अचानक मेरे रुकते ही बोली, " जरुरी भी है, क्योंकि हो  सकता है भेड़ गलत रास्ता चुन ले और भटक जाए । " अनायास ही मेरी आवाज़ तेज गयी और बोली," और चूँकि तुम सब साथ -साथ चल रहे हो, इसलिए सही चल रहे हो । तब ही तो, जब भी मौका लग जाता है,  मंदिर फूँक देते हो, मस्जिद गिरा देते हो । अमिता इकट्टठा होकर चलना , सही होने की निशानी नहीं है । और जहाँ तक मैं सोचती हूँ, समाज हमेशा गलत होता है, लेकिन बहुसंख्यक होता है इसलिए हमेशा सही होता है । लेकिन व्यक्ति  जब भी पैदा होता है हमेशा सही  होता है  । औऱ  उसकी निशानी यह है कि समाज, सुकरात जब जिन्दा होता है तो ज़हर पिलाता है और जब मर जाता है तो क़िताबों मे लिखवा देता है " Socratees  can never die " ईसा ज़िन्दा होता है तो उसे सूली देते हैं और जब मर जाते हैं, तो उसे भगवन का बेटा  बना देते हैं । जब मीरा नाचती है, तो ज़हर का प्याला मिलता है, और जब कृष्ण मे लीन हो जाती है तो उसके भगवत -प्रेम के गुण गाये जाते है, सन्तों मे चर्चा होती है, मैं कितने उदाहरण गिनाऊँ तुझें । " जल्दी-जल्दी बोलने के कारण थोड़ी-सी थकान आ गयी थी । सो थोड़ा रुकी और फिर बोली, " अमिता समाज हमेशा अतीत मे जीता है, व्यक्ति जब भी पैदा होता है, वह वर्तमान मे जीने की कोशिश करता है । परिणामस्वरूप वह तोड़ता है सड़ी - गली परम्पराये । तब समाज को लगता है । अरे !हमारा जैसा व्यक्ति और हमसे आगे, ऐसा कैसे संभव ? शायद इसीलिए हमारी धरती के जितने भी महापुरुष हैं, सबका इतिहास उठा लो, वर्तमान सभी का दुखद होगा । लेकिन समाज ने उनकी इतनी पूजा की है कि हम उस भयानक सत्य के बारे मे सोच भी नहीं सकते । जबकि सुकरात को हजारोँ लोगोँ की भीड़ मे  नंगे पैर, फटे कपड़ों मे, अपराधियों की तरह ले जाया जा रहा होग। कि  ईसा को दो चोरों के बीच मे कीलें गाड़कर लटकाया होगा । हम सभी को इनके बारे मे ऐसे बताया जाता है जैसे कि यह सब इन पर बीता ही नहीं है, यह सब इन्होँने भोगा ही नहीं है । बल्कि यह सब कपोल-कल्पनायें हैँ । क्योंकि वास्तव मे, अगर इन्होंने भोगा था । तो प्रश्न उठेगा, कौन थे वो लोग, जिन्होंने इतने सज्जन लोगोँ को भी सताये बिना नहीं छोड़ा ? वो लोग इस धरती से बाहर के तो लोग थे नहीं । बल्कि वे इस तथाकथित समाज के सुसंस्कृत लोग ही होँगे । जो युग के विकास के साथ - साथ स्वयंम्  के भी विकसित होने का पाखंड करते हैं । और ये विकसित, पढ़ें - लिखे, सुसंस्कृत लोग हजार रुपयोँ मात्र के लिए एक अनमोल बेटी को जला देते हें, दंगा करवाते हैं, युद्ध करवाते है । मैं अगर प्रेम-विवाह कर लूँ, तो ये समाज, जिसे तुम कह रही हो भटकने से बचाता  है, उन्हेँ और मुझें, मौका लगते ही, जिन्दा जलवा दे । इसलिए, प्लीज यह बात तो कहो ही मत कि समाज भटकने से बचाता है । आग लगती है यह सुनकर । लगता है पकड़ लूँ , समाज के एक-एक ठेकेदार को और गिरेवान को पकड़कर  पूँछू । कि  समाज मे लाखों वैश्याएँ कैसे पल रही हैं ? जबकि तुम्हारे यहाँ तो अधिकतर विवाह, पारम्परिक विवाह हो रहे है, तुम्हारे यहाँ तो सभी एक पत्नीनिष्ठ हैं । इन लाखों वेश्याओं और कॉलगर्लों का पेट कौन पाल रहा है ? तुम या तुम्हारा बाप । रोज़ हजारों लड़कियाँ  बाजार मे आ रही हैं । इन सबके निर्वाह के लिए क्या सरकारी ख़ज़ाने से कोई इंतज़ाम है ?"------- मैँ अमिता के हाथ को झकझोरते हुए बोली, " तुमने कल अखबार पढ़ा था ? ४५ % कामकाजी महिलाओं के साथ छेड़खानी और व्यभिचार होता है । ये सब क्या विदेशी और पश्चिम से आयात हुए लोग ही करते हैं ? यहाँ कोई पारम्परिक विवाही पुरुष तो कुछ करता ही नहीं होगा । अरे ! आधे से ज्यादा रोग तो इस पारम्परिक विवाह ने फैलायें हैं  मर्द की बाप के सामने हिम्मत होती नहीं ।  पिताजी के कहने से शादी कर ली, लड़की पसन्द नहीं आयी, तो पड़े रहने दिया घर मे और बाहर गुलछर्रे उड़ाना शुरू कर दिया । फिर पारम्परिक विवाह है तो परम्परायें भी निभायी जायेंगी । सो परंपरा भी निभ रही है एक लाख मे या चार लाख मे । बेटी के बाप पर नहीं, फिर भी देना तो पड़ेगा, राज़ी नहीं तो गैर राज़ी, चाहेँ क़र्ज़ लेकर लेकर आये । भई  परंपरा है तो वंश चलाने की । सो हमारे यहाँ वंश परंपरा का चमत्कार देखो, १९४७ मे ३५ करोड़  थे, आज १०० करोड़ से ऊपर हैं । पचास साल मे ५०% पढ तो नहीं पाये लेकिन जनसंख्या दुगुनी कर ली । " मेरे मुँह से पता नहीं क्या-क्या निकल गया और पता नहीं क्या-क्या और निकल जाता । लेकिन अचानक अमिता मेरे हाथों को दबाते हुए बोली, " बस भई बस, मुझसे गलती हो गयी । जो मैंने समाज की तरफदारी कर ली । लेकिन मोहतरमा, अब मेरा पीरियड लगने वाला है और मैं चली । लेकिन एक बात कहूँ " और उठते हुए बोली , " चाहें कुछ समझ मे आया या न आया but you defined very well that society is sheep