- मै जानता हूँ कि गुत्थी कैसे सुलझेगी ? लेकिन मै सुलझा नहीं सकता, शायद यही संसार है | इससे अच्छी परिभाषा संसार की क्या होगी ? "संसार" लिखा है ये न तो तिरस्कार के लिए लिखा है और न व्यंग के लिए | वरन यह वास्तविकता-सी लगती है | क्योंकि मै सोचता हूँ अगर मै अकेला हूँ, तो कुछ भी करना और न करना मूल्यांकन का विषय ही नहीं है | क्योंकि जो भी हूँ, मै हूँ | लेकिन जहाँ मेरे अतिरिक्त, अन्य भी अस्तित्व रखता है |
वहाँ मै किसी मात्रा मे सही या गलत हो सकता हूँ परन्तु पूरी मात्रा मे सही या गलत नहीं हो सकता | इसलिए दो ही सम्भावनाये है पूरी तरह से सही या गलत होने के लिए | या तो मै सब हो जाऊ या मै ही मै रह जाऊ | अथार्त " अहम् ब्रह्मास्मि " या "एक तू ही निरंकार" | जो भी पीड़ा है, उसे विश्लेष्ण करके, नाम कोई भी दे दूं लेकिन मूल यही है कि न तो "मै ही मै बचा है" और "न तू ही तू है"|
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